अभिप्रेरणा लेटिन भाषा के (Motam) मोटम या। (To move) गति करना में हुए शब्द से बना है ।
अभिप्रेरणा एक ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को क्रियाशील बनाती है तथा गति प्रदान करती है।

Motivation से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं

  • सीवी गुड के अनुसार – अभिप्रेरणा कार्य को प्रारंभ करना, जारी करना ,वह नियंत्रित करने की शक्ति है।
  • स्किनर के अनुसार -अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोच्च राजमार्ग है।
  •  कैच एवं कैच फील्ड के अनुसार -अभिप्रेरणा हमारे क्यों का उत्तर देती है ?
  • एटकिंसन के अनुसार -अभिप्रेरणा व्यक्ति के कार्य करने की प्रवृत्ति है।
  • मैकदुगल के अनुसार -अभिप्रेरणा वे शारीरिक व मनोवैज्ञानिक दशा है जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।

अभिप्रेरणा ( Motivation ) के सोपान/ तत्व/ स्रोत/ चक्र

Motivation के सोपान को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है जिसमें आवश्यकता (Need )नीड , चालक/ प्रणोद तीसरा इसका लक्ष्य तथा प्रोत्साहन है।

Motivation
Motivation

आवश्यकता ( NEED )

Motivation का महत्वपूर्ण सोपान कमिया अधिकता की शारीरिक स्थिति  ही आवश्यकता कहलाती हैं यह दो प्रकार की होती हैं।

  1. अनिवार्य आवश्यकता
  2. गैर अनिवार्य आवश्यकता

अनिवार्य आवश्यकता में जैसे भूख ,प्यास, नींद जो कि जन्मजात प्रेरक से संबंधित हो वह अनिवार्य आवश्यकता के अंतर्गत सम्मिलित होते हैं।

गैर अनिवार्य आवश्यकता जो कि पद, नौकरी जो कि व्यक्ति अर्जित करता है वह गैर अनिवार्य आवश्यकता कहलाती है।

Motivation को प्रारंभ करने के लिए आवश्यकता होने आवश्यक है इसमें ऊर्जा की कमी या पानी की कमी रोजगार की आवश्यकता जैसी आवश्यकता है जो व्यक्ति को अभी प्रेरित करने के लिए आवश्यक होती हैं।

चालक / प्रणोद (Drive)

इसका संबंध आवश्यकता से होता है आवश्यकता उत्पन्न होते ही व्यक्ति में चालक का जन्म हो जाता है अर्थात आवश्यकता के कारण उत्पन्न तनाव एवं क्रियाशीलता की जो स्थिति उत्पन्न होती है वह चालक कहलाते हैं जैसे भूख, प्यास, थकान आदि।

आवश्यकता उत्पन्न होने के बाद दूसरा जो सोपान है वह चालक है जिसके कारण व्यक्ति कार्य करने के लिए अभीप्रेरित होता है जैसे ऊर्जा की कमी से संबंधित चालक भूख पानी की कमी से संबंधित चालक प्यास है इस प्रकार के चालक जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए आवश्यक होते हैं।

लक्ष्या / प्रोत्साहन / (incentive)

यहां Motivation का अंतिम तत्व इसका संबंध चालक व आवश्यकता दोनों से होता है अर्थात वे तत्व या प्रताप जिन की पूर्ति से चालक व आवश्यकता को संतुष्टि हो जाती है लक्ष्य प्रोत्साहन कहलाते हैं जैसे भूख चालक से जुड़ा हुआ भोजन food प्रोत्साहन है।

यह Motivation का तीसरा सोपान है जिसमें चालक तभी शांत होता है जब भूख से संबंधित चालक यदि भोजन मिलने पर शांत होता है। प्याज से संबंधित चालक पानी मिलने पर प्यास शांत होता है। लक्ष्या प्रोत्साहन मिलने पर अभिप्रेरणा समाप्त हो जाती है

नोट इस प्रकार अभिप्रेरणा Motivation के तीन तत्व नीड, ड्राइव, इंसेंटिव तीन प्रकार के अभिप्रेरक हैं।

अभिप्रेरक क्या है ?

अभीप्रेरक को मुख्य रूप से दो प्रकार में बांटा गया है।

जन्मजात अभिप्रेरक

वहां अभिप्रेरक जो जन्म से सभी में समान रूप से होते हैं जन्मजात अभिप्राय कहलाते हैं इन्हें प्राथमिक अभिप्रेरक भी कहते हैं जैसे सभी में स्वाभाविक रूप से भूख ,प्यास ,संवेग आधारित जो भी अभीप्रेरक होते हैं वह जन्मजात अभिप्रेरक कहलाते हैं।

अर्जित अभिप्रेरक

इस प्रकार के अभिप्रेरक में व्यक्ति अर्जित करता है सभी  स्वाभाविक  रूप से अलग-अलग प्रकार की अभिप्रेरक कार्य करते हैं जिन्हें द्वितीय या अर्जित अभिप्राय कहते हैं।
अर्जित अभी प्रेरक के रूप में जैसे किसी पद, दंड, पुरस्कार व नौकरी के लिए अभिप्रेरक होना।

अभिप्रेरक के लिए अलग-अलग वैज्ञानिकों के अनुसार बांटा गया है।

मैस्लो के अनुसार अभिप्रेरक

मेस्लो ने अभिप्रेरक के दो प्रकार बताए हैं।

  1. अर्जित अभिप्रेरक
  2. जन्मजात अभिप्रेरक

थॉमसन के अनुसार अभिप्रेरक

थॉमस के अनुसार अभिप्रेरक दो प्रकार के होते हैं

  1. स्वाभाविक अभिप्रेरक
  2. कृतिम अभिप्रेरक

गैरिक के अनुसार अभिप्रेरक

अभिप्रेरक तीन प्रकार के होते हैं

  1. जैविक
  2. सामाजिक
  3. मनोवैज्ञानिक

अभिप्रेरणा ( Motivation ) के सिद्धांत

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत राइट द्वारा दिया गया इनके अनुसार व्यक्ति सुख प्राप्ति के उद्देश्य से प्रेरित होकर कार्य करता है। फ्राइड के अनुसार दो प्रकार की मूल प्रवृत्तियां व्यक्ति को क्रिया करने के लिए प्रेरित करती है।

जीवन मूल प्रवृत्ति

जीवन मूल प्रवृत्ति को ईरोस भी कहते हैं। इसका संबंध जीवन के निर्माण कार्य कार्यों से होता है।

मृत्यु मूल प्रवृत्ति

मृत्यु मूल प्रवृत्ति को थेनाटोस भी कहा जाता है इसका संबंध विध्वंस कारी कार्यों से होता है यह पतन की ओर ले जाती है।

मूल प्रवृत्ति आत्मक सिद्धांत

  • यह सिद्धांत विलियम मेकडूगल द्वारा दिया गया।
  • मूल प्रवृत्तियों का जनक विलियम मदुगल को माना जाता है
  • यह सिद्धांत 1908 में दिया गया
  • यह सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति में 14 प्रकार के संवेग और उनसे जुड़ी हुई 14 प्रकार की मूल प्रवृत्तियां पाई जाती है जो व्यक्ति को क्रियाशील बनाती है।

उद्दीपक अनुक्रिया का सिद्धांत

यह सिद्धांत थाईनडाईक द्वारा दिया गया। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति वातावरण में उपस्थित उद्दीपक पदार्थों से प्रेरित होकर सीखता है।

शारीरिक परिवर्तन या गति का सिद्धांत।

  1. यह सिद्धांत विलियम जेम्स , शेल्डन व रदरफोर्ड द्वारा दिया गया।
  2. इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में समय स्थिति वातावरण के अनुसार शारीरिक परिवर्तन होते हैं रहते हैं
  3. यह परिवर्तन ही बालक को अपनी अवस्था के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

आवश्यकता अनुक्रम का सिद्धांत

सिद्धांत मैस्लो द्वारा दिया गया इस सिद्धांत का अन्य नाम रैना का पदानुक्रम सिद्धांत भी कहते हैं। इस सिद्धांत का एक और अन्य नाम स्व यथाथीकरण सिद्धांत भी कहते हैं ।
इस सिद्धांत के अनुसार निम्न से उच्च स्तर की पांच आवश्यकता है व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।

  1. शारीरिक आवश्यकता (जैसे भूख, प्यास ,सुरक्षा जैसे कपड़े घर आदि)
  2. समूह
  3. समाज  ( स्नेहा प्रेम समाज )
  4. आत्मनिर्भर ( इसमें नौकरी पद प्रतिष्ठा )
  5. आत्मसिद्धि  ( इसमें यस ,गौरव ,स्वयं प्रदर्शन आदि संबंधित है )

इन आवश्यकताओं में तीन आवश्यकताएं निम्न स्तर की है शारीरिक सुरक्षा समूह अन्य दो आवश्यकताएं उच्च स्तर की हैं आत्मनिर्भर व आत्मसिद्धि

विरोधी प्रक्रिया का सिद्धांत।

  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन सोलोमन व कोरविट द्वारा दिया गया ।
  • इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति दो प्रकार के अभिप्रेरणा जैसे सुख प्राप्ति या दुख से बचने के लिए कार्य करता है।

क्षेत्रीय सिद्धांत यह सिद्धांत

कुर्त लेविन द्वारा दिया गया इस सिद्धांत के अनुसार एक क्षेत्र में विशेष के वातावरण से प्रेरित होकर क्रिया करता है क्योंकि यदि व्यक्ति क्षेत्र के अनुसार कार्य नहीं करेगा तो उससे व्यक्ति को वातावरण में समायोजन नहीं कर पाएगा इसलिए अभिप्रेरणा का संबंध वातावरण व समाज दोनों से है ।

उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धांत

यहां सिद्धांत डेविडीसी मेकक्लिलैंड और एटकिंशन के द्वारा दिया गया।

डेविडीसी मेकक्लिलैंड
यहां आरोपण का सिद्धांत भी कहते हैं यह सिद्धांत 1953 में दीया गया।
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की उपलब्धियां उसे सीखने के लिए प्रेरित करती है। अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की कुछ सामान्य व विशिष्ट उपलब्धियां होती हैं जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं। 
यहां सिद्धांत व्यक्ति की महत्वकांक्षी स्तर का अभिप्रेरणा का आधार होता है।
एटकिंसन

1964 में उपलब्धि अभिप्रेरणा से संबंधित दो अभीप्रेरक या अर्जित प्रवृतियां बताई थी।

  1. सफलता प्राप्त करने से संबंधित अभीप्रेरक
  2. असफलता से बचने से संबंधित अभीप्रेरक

इन अभीप्रेरकों के आधार पर चार प्रकार की क्रियाओं को बताया गया।

  • जिस बालकों में सफलता अभी प्रेरक ज्यादा होता है और असफलता कम हो।
    वे बालक सकारात्मक सोच वह सफलता प्राप्त करने के लिए उद्देश्य से कार्य करते हैं।
  •  वह बालक जिसमें और सफलता ज्यादा तथा सफलता कम है वह बालक नकारात्मक सोच वह असफलता से बचने के लिए कार्य करते हैं।
  • दोनों की कमी होने पर बालक मंदिर व निष्क्रिय प्रवृत्ति का होता है
  • दोनों प्रवृत्तियों के अधिक होने पर बालक करो या मरो की स्थिति या हर हाल में सफलता प्राप्ति के लिए कार्य करता है।

स्वास्थ्य संबंधित सिद्धांत

यह सिद्धांत हर्ज वर्ग द्वारा दिया गया।

व्यक्ति, आवश्यकता, चालक, लक्ष निर्देशित व्यवहार, लक्ष्य को प्राप्त करना ,चालक की कमी

अधिगम में अभिप्रेरणा का महत्व या उपाय

  1. पुरस्कार व प्रशंसा
  2. लक्ष्य का ज्ञान कराने के लिए
  3. सफलता के लिए प्रेरित करने के लिए
  4. असफलता का भय दिखाकर
  5. श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग करके
  6. पाठ्यवस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न करके
  7. दंड का भय दिखाकर
  8. पाठ्य सहगामी क्रियाओं का प्रयोग
  9. उचित शिक्षण विधि का प्रयोग
  10. प्रतियोगिताओं का आयोजन करके
  11. वास्तविक से अवगत कराने के लिए

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