Rajasthan Ki Jalvayu | राजस्थान की जलवायु एवं मानसून

  • मौसम  -अल्पकालिक वायुमंडलीय दशाओं के योग को मौसम कहते हैं |
  • जलवायु- दीर्घकालिक मौसमी दशाओं के योग को जलवायु कहते हैं |
  • जिसमें आंशिक परिवर्तन 30 वर्ष में होता है |
  • जलवायु एक महत्वपूर्ण भौगोलिक कारक है जो ना केवल प्राकृतिक तत्वों को बल्कि आर्थिक और जनाकीय स्वरूप को प्रभावित करता है |
Rajasthan Ki Jalvayu
Rajasthan Ki Jalvayu
कर्क रेखा भारत को दो भागों में विभाजित करती हैं |
  1. उत्तरी भारत (शीतोष्ण कटिबंध)
  2. दक्षिणी भारत (उष्ण कटिबंद)

इन दोनों कटिबंधो पर वर्ष भर मानसूनी पन्नों का प्रभाव रहता है अतः भारत की जलवायु मानसूनी है |

मार्सडेन के अनुसार विश्व के सभी प्रकार की जलवायु भारत में पाई जाती हैं |

पश्चिमी भाग  में-     शुष्क –  उच्च तापमान-  अल्प वर्षा (लु)

पूर्वी भाग –  उपाद्र जलवायु-   निम्न तापांतर –   वर्षा अधिक

राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपाद्र मानसूनी प्रकार की हैं |

पश्चिमी राजस्थान में अधिक दैनिक वार्षिक तापांतर ,अल्प वर्षा, अत्यधिक गर्म एवं झुलसा देने वाली लु ,धूल भारी आंधियां चलती हैं इस क्षेत्र में शुष्क जलवायु पाई जाती हैं

जबकि अरावली के पूर्वी बाग में अपेक्षाकृत कम तापमान कम तापांतर वर्षा की थोड़ी अधिकता के कारण उपद्र जलवायु पाई जाती हैं |

Rajasthan Ki Jalvayu
Rajasthan Ki Jalvayu

Rajasthan Ki Jalvayu को प्रभावित करने वाले कारक

1- अक्षांशीय स्थिति –

  • राजस्थान की अक्षांशीय स्थिति 23°30′ उत्तर अक्षांश से 30°12′ मिनट उत्तरी अक्षांश है |
  • राज्य के दक्षिणी भाग में कर्क रेखा गुजरती है |
  • राजस्थान का अधिकांश बाग शीतोष्ण कटिबंध में है अंतः इस भाग में दैनिक और वार्षिक तापांतर अधिक पाया जाता है |
  • राज्य का दक्षिण भाग उष्ण कटिबंध में इस भाग की निम्न अक्षांशीय स्थिति के कारण दैनिक और वार्षिक तापांतर कम पाया जाता है |

2- समुद्र तल से ऊंचाई

  • समुद्र ताल से ऊंचाई की ओर तापमान कम होता है , तापमान गिरने की औसत दर प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड हैं तापमान गिरने की इस दर को सामान्य ताप हास दर कहते हैं
  •  जो प्रदेश समुद्र तल से अधिक ऊंचाई पर होता है उसका तापमान कम पाया जाता है |
  • जैसे – माउंट अबू
  • राजस्थान का अधिकांश भाग 370 मीटर से कम ऊंचाई पर स्थित है इसी कारण राज्य में तापमान अधिक पाया जाता है |
  •  ऊंचाई में भिन्नता के कारण ही एक ही अक्षांश पर स्थित विभिन्न स्थान का तापमान सम्मान नहीं होता |

3- समुद्र तट से दूरी

  • समुद्र तट से दूरी बढ़ाने के साथ आद्रता में कमी आती हैं और शुष्कता बढ़ती है |
  • समंदर तट के निकट स्थित क्षेत्र की जलवायु आद्र |
  • जैसे- दक्षिण और दक्षिण पूर्वी राजस्थान |
  • समुद्र तट से दूर प्रदेश की जलवायु शुष्क होती है |
  • जैसे – उत्तरी पश्चिमी राजस्थान |
  • समुद्र तट से दूरी बढ़ाने का साथ वर्षा की मात्रा भी कम होती है |
  • राजस्थान में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम तथा दक्षिण से उत्तर की ओर वर्षा की मात्रा कम होती है |
  • एक ही अक्षांश पर स्थित विभिन्न स्थान पर वर्षा का वितरण सम्मान नहीं पाया जाता है क्योंकि इनकी समुद्र तट से दूरी समान नहीं होती |

4- अरावली की स्थिति

  • अरावली राजस्थान में दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर फैली हुई है दक्षिण पश्चिम मानसून की अरबसागरी शाखा इसके समानांतर है अर्थात अरावली इस मानसूनी शाखा के लिए अवरोध का कार्य नहीं करती हैं अतः इस शाखा से राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है |
  • यदि अरावली की दिशा को बदल दिया जाए तो राजस्थान में इस मानसूनी शाखा से वर्षा होगी |
  •  पश्चिमी राजस्थान और पूर्वी राजस्थान में तापमान तापांतर और वर्षा में अंतर पाया जाता है इसका प्रमुख कारण अरावली है क्योंकि यह पश्चिम राजस्थान और पूर्व राजस्थान की जलवायु को सामंजस्य स्थापित नहीं होने देती है इसके कारण दोनों प्रदेशों की जलवायु में एकरूपता नहीं पाई जाती है |

5- स्थल का प्रभाव

  • भारत में स्थल और जल का आसमान वितरण है दक्षिणी भारत तीन और जल से गिरा है हमारा राजस्थान चारों ओर स्थल से गिरा हुआ है स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडे होते हैं और जल धीरे गर्म और धीरे ठंडा होता है |
  •  स्थल और जल के इस विभेदी तापमान के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में अलग-अलग ऋतुओं में अलग-अलग वायुदाब विकसित होता है इसमें मानसूनी पवनों की उत्पत्ति होती है तथा इनमें उत्कर्मन होता है |

6- मिट्टी की प्रकृति /संरचना

  • पश्चिमी राजस्थान में रेतीली बलुई मृदा पाई जाती है यह जल्दी गर्म हो जल्दी ठंडी होती है इसी कारण मरुस्थलीय क्षेत्र में दिन अधिक गर्म राते ठंडी होती हैअतः दैनिक तापांतर अधिक पाया जाता है |

7- वनस्पति का आवरण

  • दक्षिणी राजस्थान में वनस्पति का आवरण अधिक पाया जाता है इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है और जलवायु भी नम रहती हैं जबकि पश्चिमी राजस्थान वनस्पति की कमी के कारण वर्षा कम होती है |

भारतीय मानसून

  • मानसून शब्द अरबी भाषा के मौसिम से बना है |
  • मानसून का सर्वप्रथम उपयोग अल मसूदी ने किया |
  • मौसिम पवने जो ऋतुओ के अनुसार चलती है |
  • विशेषताएं – अनिश्चित ,अनियमित, अल्पकालीन अपर्याप्त
  • इसी कारण भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहते हैं

1- उत्तरी पूर्वी मानसून/ शीतकालीन मानसून

  1. शीत रितु (मध्य दिसंबर – मध्य मार्च )
  2. ग्रीष्म रितु (मध्य मार्च – मध्य जून)

2-दक्षिणी पश्चिम /गीष्म कालीन मानसून

  1. वर्षा रितु (मध्य जून – मध्य सितंबर)
  2. शरद रितु (मध्य सितंबर – मध्य दिसंबर)
  3. (मानसून परिवर्तन की रितु)
परंपरागत रितु – द्वि मासिक

1- बसंत रितु – चैत्र ,वैशाख – मार्च अप्रैल

2-ग्रीष्म रितु –  जेठ ,आषाढ़- मई, जून

3-वर्षा रितु – श्रवण ,भाद्रपद- जुलाई, अगस्त

4-शरद रितु – अश्विन, कार्तिक – सितंबर ,अक्टूबर

5-हेमंत रितु – मार्गशीश, पौष -दिसंबर

6-शिशिर रितु – माघ ,फाल्गुन – जनवरी फरवरी

1-उत्तरी पूर्वी /शीतकालीन मानसून

  •  शीत रितु (मध्य दिसंबर – मध्य मार्च)
  • तापमान शीत रितु की वास्तविक सुरवात दिसंबर में क्योंकि इस समय सूर्य की स्थिति दक्षिणायन में होती है उत्तरी भारत में तापमान कम होता है |
  • सबसे कम तापमान उत्तरी पश्चिमी भारत में होता है यहां कई बार तापमान हिमांक बिंदु से नीचे चला जाता है |
  • जनवरी में उत्तरी राजस्थान में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम और हाड़ोती के पत्थर में तापमान 90 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है |
  • हिमालय में हिमपात होता है तब राज्य शीतलहर का चपेट में आ जाता है |

वायुदाब

  • तापमान और वायुदाब में विपरीत संबंध होता है |
  • इस समय थार के मरुस्थल में तापमान कम होने के कारण उच्च वायदा बनता है |
  • यहां अधिकतम 1019 mb वायुदाब विकसित होता है जबकि हिंद महासागर में तापमान अधिक होने के कारण न्यून वायदा विकसित होता है |

पवने और वर्षा

  • वायुदाब के अंतर के कारण पवनों की उत्पत्ति होती है पवन उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं अतः शीत ऋतु में पवने स्थल से जल की ओर चलती है यह ठंडी और शुष्क होती हैं |
  • इनसे उत्तरी भारत में वर्षा नहीं होती हैं
  • शीतकाल में कई बार उत्तरी भारत में वर्षा होती है यह वर्षा भूमध्यसागरीय चक्रवात से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभ से होती है इसे मावठ कहते हैं रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है अतः इसे गोल्डन ड्रॉप्स या सुनहरी बुंदे करते हैं |
  • भूमध्य सागरीय चक्रवात को भारत की ओर पश्चिमी जेट स्ट्रीम करती है |
  • दक्षिणी शाख फरवरी में 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर स्थापित हो जाती है |
  • तापमान ,वायुदाब और वर्षा  का अध्ययन करने के लिए सामान्य रूप से जनवरी और जुलाई माह का अध्ययन किया जाता है |

2- ग्रीष्म ऋतु ग्(मध्य मार्च – मध्य जून)

  •  तापमान , वायुदब और पवनने – मध्य मार्च में सूर्य की स्थिति भूमध्य रेखा पर होती है मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण में होता है इसे उत्तरी भारत में तापमान बढ़ने लगता है सर्वाधिक तापमान थार के मरुस्थल में होता है मई-जून सबसे अधिक गर्म महीने होते हैं इनका तापमान कई बार 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है |
  • थार के मरुस्थल में तापमान अधिक होने के निर्धारित होता है जबकि इसके चारों तरफ उच्च वायदा विकसित होता है |
  • अतः थार का मरुस्थल चारों ओर से पवनो  को अपनी और आकर्षित करता है इसे धूल भरी आंधी है आसमान का रंग पीला हो जाता है, थार के मरुस्थल में गर्म शुष्क संवहनीय धारा चलती है इन्हें लू या ताप लहरी कहते हैं |

उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक धूल भरी आंधियां चलती है क्योंकि इस क्षेत्र में धरातलीय अवरोध और वनस्पति का अभाव पाया जाता है

आंधियों के विपरीत दक्षिण पूर्वी राजस्थान में वज्र तूफान सर्वाधिक आते हैं

इस समय थार के मरुस्थल में निम्न वायु के बगैर बनते हैं इन्हें भभुलिया लिया कहते हैं

ग्रीष्म काल में होने वाली वर्षा फ्प्री मानसूनी वर्षा कहते हैं इससे दक्षिण भारत में आम के बागानों में आम वर्षा कहवा के बागानों में फूलों की बौछार या चेरी ब्लॉसम कहते हैं

पूर्वोत्तर भारत में काल बैसाखी या नार्वेस्टर कहते हैं

2-दक्षिणी पश्चिमी ग्रीष्मकालीन मानसून

 वर्षा ऋतु ( मध्य जून – मध्य सितंबर)

  • तापमान, वायुदाब, पवने – मध्य जून में सूर्य की स्थिति कर्क रेखा पर होती है |
  • अतः थार के मरुस्थल में तापमान अधिक होने के कारण न्यून वायदाब विकसित होता है या न्यूनतम 937mb वायदाब विकसित होता है |
  • इस समय हिंद महासागर में उच्च वायदाब बनता है अतः पवने जल से स्थल की ओर चलती हैं इनसे वर्षा होती है इन्हें दक्षिण पश्चिम मानसून पवने में कहते हैं |
  • इनकी 2 शाखाएं का है |

1- अरब साबरी मानसून शाखा

2- बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा

1-अरब सागर में मानसून शाखा

  • यह मानसूनी शाखा राजस्थान में सर्वप्रथम प्रवेश करती है |
  • सर्वाधिक आद्रता होती है |
  • लेकिन राजस्थान में बहुत कम वर्षा करती हैं क्योंकि अरावली अवरोध का कार्य नहीं करती हैं अरावली इसके समानांतर है अतः यह मानसूनी शाखा दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर राजस्थान से गुजर जाती है |

2-बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा

  • मानसून शाखा से राजस्थान में वर्षा होती हैं |
  • यह दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ती है |
  • समुंदर से दूरी बढ़ने के साथ आद्रता में कमी आती हैं इसी कारण राजस्थान में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की और वर्षा की मात्रा कम होती है

दक्षिणी पश्चिमी मानसून पूर्वी जेट स्ट्रीम से प्रभावित होता है पूर्वी जेट स्ट्रीम 8° डिग्री से 30° डिग्री अक्षांश के बीच प्रवाहित होती है

शरद ऋतु /मानसून /परावर्तन की ऋतु

(मध्य सितंबर – मध्य दिसंबर)

  •  मध्य सितंबर के बाद सूर्य की स्थिति दक्षिणायन में होती है |
  • अतः उत्तरी भारत में तापमान कम होने लगता है वायुदाब अस्थीर रहता है मानसूनी पवने समुंद्र की ओर लौटने लगती हैं इन लौटते हुए मानसूनी पवने से तमिलनाडु में बरसात होती है |
  • अक्टूबर से आसमान साफ रहता है अतः दिन को तापमान अधिक होता है और इस समय वातावरण में नमी भी अधिक बनी रहती है |
  • ताप और नमी की अधिकता के कारण दिन में मौसम कष्टकारी होता है इसे कार्तिक मास की ऊष्मा कहते हैं रात के समय सर्दी पड़ती है ऐसे गुलाबी सर्दी कहते हैं |

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