Rajasthan Ki Mrida Or Uske Prakar | राजस्थान की मृदा और उसके का प्रकार
राजस्थान की मृदा ( Rajasthan Ki Mrida ) एक महत्वपूर्ण तत्व है जो राजस्थान राज्य में पाया जाता है। यह संभवतः सूखी मृदा होती है, लेकिन मौसम की विभिन्न परिवर्तनों के कारण यह बदलती है। मृदा को सूखा होने पर यह सुखने लगती है और जगह जहां सूखी मृदा स्थित है वहां सूखी होने पर जमने लगती है। मृदा से संबंधित जानकारी से आप राजस्थान राज्य की प्रकृति, जलवायु और जगह की विशेषताओं को समझ सकते हैं।
मृदा – लैटिन भाषा -SOLUM -फर्श भूपटल पर पाया जाने वाला असंगठित कणों का आवरण जिसका निर्माण भौतिक ,जैविक ,मानवीय क्रिया एवं पर्यावरण परिवर्तन का परिणाम परिणाम है

मृदा निर्माण की प्रक्रिया – पेडोजेनेसिस – मृदा जन
मृदा का निर्माण मुख्य रूप से अपक्षय पर निर्भर
पेडोलॉजी – विज्ञान की वह शाखा में मृदा संबंधी अध्ययन किया जाता है
मृदा का संगठन
- खनिज पदार्ध 40 से 50%सिलिका
- फ्कार्बनिक योगिक 5 से 10% अपशिष्ट
- मृदा जल 2 .5%
- मृदा वायु 2. 5%
- सूक्ष्मजीव शैवाल
- मृदा की प्रकृति सामान्य उदासीन मृदा PH =7. 0
- अम्लीय मृदा ph = 7 से कम
- क्षारीय मृदाph = 7 से अधिक जिप्सम का प्रयोग
- मृदा के पोषक तत्वों की प्रभावशीलता तथा सूक्ष्मजीवों की सक्रियता PH क्रम 6.5-
7.5 पर होगी
विशेषता –
- मृदा अपक्षरण का परिणाम
- मृदा प्राकृतिक तत्वों का समुच्य
- मृदा गतिशील माध्यम
- मृदा परिवर्तनशील एवं विकास मुखी
- मृदा में मोटे कण ,बीच कण,बारीक़ कण पाए जाते हैं
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली 1956
मृदा के भौगोलिक वितरण निर्माण की प्रक्रिया – 8 भाग
- जलोढ़ मृदा
- काली मृदा
- रेतीली
- लाल पीली मृदा
- पर्वती मर्दा
- लवणीय मृदा
- लेटराइट मृदा
- जैविक मृदा
1.जलोढ़ मृदा
- दोमट मृदा , कांप मृदा,
- कछारी मृदा निर्माण – नदियों द्वारा लाई गई मृदा
विस्तार –
A – पूर्वी मैदानी प्रदेश
- चंबल बेसिन
- बनास बेसिन
- माही बेसिन
अलवर ,भरतपुर, जयपुर ,दौसा, करौली, धौलपुर ,सवाई माधोपुर, प्रतापगढ़ ,बांसवाड़ा
B – गगर प्रदेश – गंगानगर ,हनुमानगढ़
विशेषता-
- विकसित मृदा
- सर्वाधिक उपजाऊ मृदा
- गहन कृषि का क्षेत्र
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण तीव्र पोशक
- नाइट्रोजन ,हूयमस ,फास्फोरस की कमी
- पोटेशियम,कैल्सियम की अधिकता
जलोढ़ मृदा के प्रकार
- भाबर – कंकड़ पत्थर वाली जलोढ़ मृदा
- तराई – दलदली जलोढ़ मृदा
- बांगर – प्राचीन जलोढ़ मृदा,, लूनी बेसिन में
- खादर – नवीन जलोढ़ मृदा ,चंबल में
2. काली मृदा –
- कपास मृदा ,रेगुर मृदा
- निर्माण ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित बेसाल्ट चट्टान के विखंडन से निर्मित
- विस्तार – हाड़ौती का पठार कोटा ,बूंदी ,12, झालावाड़
विशेषता
- लोहा तथा एलुमिनियम की प्रधानता
- टिटेनोफेरस मैग्नेटाइट योगीक
- जल धारण क्षमता सर्वाधिक
- उपयोगी – कपास के लिए
- न्यूनतम स्तर – काली मीठी
- कृषि प्रबंध पद्धति के अनुरूप व्यवहार करने वाली मृदा
3. लाल मृदा –
- पर्वतीय मृदा निर्माण पर्यावरण परिवर्तन के कारण पर्वतों के ऊपरी परत के अपक्षरण संगठन एवं संरचना में परिवर्तन से निर्मित
- विस्तार – अरावली पर्वतीय प्रदेश उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ ,डूंगरपुर, बांसवाड़ा ,दक्षिण राजस्थान
विषेशता
- लोह ऑक्साइड की अधिकता
- मक्का के लिए उपयोगी
- हुमस ,नाइट्रोजन की अधिकता
- अम्लीय प्रकृति
- अल्प विकसित मृदा
- चादरी अपरदन
4. लाल पीली मृदा –
- भूरी मृदा
- निर्माण -जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रेनाइट तथा नीस रूपांतरित चट्टान के अपक्ष रण ,विखंडन, वियोजन से निर्मित
- विस्तार – बनास बेसिन में भीलवाड़ा ,अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर
विशेषता
- लाल पीली उच्च भूमि में बाजरा ,मूंगफली, आलू उपयोगी
- निम्न भूमि क्षेत्र में ज्वार ,चावल ,तंबाकू उपयोगी
5. रेतीली बलुई मृदा –
- निर्माण टेथिस सागर के अवशेष के रूप में
- विस्तार – पश्चिमी राजस्थान 12 जिलों में
- सर्वाधिक विस्तार जैसलमेर ,बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर ,झुंझुनू ,नागौर, गंगानगर हनुमानगढ़ ,सीकर ,चूरू ,जालौर,पाली
विशेषता
- सर्वाधिक विस्तार
- न्यूनतम जलधारण क्षमता
- नमी में कमी
- हुमस ,नाइट्रोजन कार्बनिक तत्वों की कमी
- वायु अपरदन की समस्या
6. लवणीय मृदा/ क्षारीय मृदा
- निर्माण – मर्दा में लवण / क्षारीय तत्वों का मिलना
- खारे पानी के मिलने से – सेम की समस्या
- लवणी चट्टानी भूमि
- अत्यधिक सिंचित क्षेत्र
- विस्तार – पश्चिमी राजस्थान गंगानगर, हनुमानगढ़ , बाड़मेर ,जालौर
- अनुपजाऊ मृदा
राजस्थान की मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
1975 ,मृदा संरक्षण विभाग द्वारा पांच भागों में विभाजित |
1-वर्टीसोल
2-इन्सेप्टिसॉल
3-अल्फिसोल
4-एन्टीसोल
5-एरिडिसॉल
1-वर्टीसोल [काली मर्दा] – हाडोती के पठार में
- कोटा, बूंदी ,बारां, झालावाड़
- जलवायु – अति आद्र
न्युनतम मीठी
2-इन्सेप्टिसॉल [लाल मर्दा] – दक्षिण अरावली पर्वतीय प्रदेश
- उदयपुर,राजसमंद ,भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ ,बांसवाड़ा
- आद्र जलवायु प्रदेश में
3-अल्फिसोल [जलोढ़ मर्दा ] – जलवायु उप आद
- डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़
- मैदानी क्षेत्र
- निर्माण – जलोढ़ मृदा
- विस्तार – पूर्वी मैदानी प्रदेश
- सर्वाधिक उपजाऊ
4-एन्टीसोल [बलुई मर्दा ] – शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क प्रदेश
- विस्तार – पश्चिमी राजस्थान
- राजस्थान में सर्वाधिक विस्तार
5-एरिडिसॉल – शुष्क जलवायु [10 सेंटीमीटर से कम वर्षा ]
- विस्तार – चूरू, नागौर ,जोधपुर,झुंझुनू
notes
- प्रो थर्पे एवं स्मिथ का वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान की मृदा विभाजित – 8 भागों में
- कृषि विभाग दवारा मर्दा वर्गीकरण – 14 भागों में
- कृषि में उपयोगिता ,उपलब्धता तथा प्रधानता के आधार पर मृदा का वर्गीकरण – 9 भाग