Rajasthan Ki Van Sampada | राजस्थान की वन संपदा 2023
राजस्थान राज्य में वन संपदा ( Rajasthan Ki Van Sampada ) एक महत्वपूर्ण स्रोत है जो वनस्पतियों, जंगलों, जंगली जानवरों, जंगली पशुओं और जंगली संसाधनों से सम्बंधित है। राजस्थान राज्य में बहुत सारे वन हैं जो वनस्पतियों, जंगली जानवरों, जंगली पशुओं और जंगली संसाधनों के स्रोत हैं। राजस्थान राज्य में बहुत सारे वन हैं जो वनस्पतियों, जंगली जानवरों, जंगली पशुओं और जंगली संसाधनों के स्रोत हैं। राजस्थान राज्य के वनों में अधिकांशतः संरचनात्मक वन हैं जो वनस्पतियों, जंगली जानवरों, जंगली पशुओं और जंगली संसाधनों के स्रोत हैं।
वनस्पति–
- पेड़ पौधों, वृक्षों और लताओं के समूह को वनस्पति कहते हैं |
- इनका निश्चित पर्यावरण होता है |

प्राकृतिक वनस्पति (Rajasthan Ki Van Sampada)
- बिना किसी मानवीय बाहरी हस्तक्षेप के मिट्टी और जलवायु के अनुकूल होकर स्वता उगती है और विकास करती है उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं |
वन –
- वनस्पति की तुलना में व्यापक होते हैं इनमें प्राकृतिक और अप्राकृतिक वनस्पति के साथ-साथ वन्य जीव जंतु और क्षेत्र के पर्यावरण को शामिल किया जाता है |
- इनका हमारे लिए आर्थिक महत्व होता है |
वनों की पृष्ठभूमि
- अंग्रेजों के शासन से पूर्व वनों का उपयोग पारंपरिक रीति-रिवाजों में होता है |
- 1855 में लॉर्ड डलहौजी ने एक वन कानून बनाया इस कानून के आधार पर इमारती लकड़ी पर अधिकार सरकार का होगा |
- 1894 ब्रिटिश भारत में पहली वन नीति बनाई गई |
- 1910 में सर्वप्रथम जोधपुर रियासत में वन संरक्षण नीति बनाई गई |
- 1927 में अंग्रेजों के द्वारा राष्ट्रीय वन अधिनियम बनाया गया |
- 1935 में अलवर रियासत के द्वारा वन संरक्षण नीति बनाई गई |
- 1949- 50 में राजस्थान वन विभाग की स्थापना की गई |
- मुख्यालय – अरण्य भवन- चारण झालाना डूंगरी (जयपुर) है |
- 1952 में स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई |
- इसके अनुसार एक तिहाई भाग वनाचित होना चाहिए |
- पर्वतों का 60% से अधिक और मैदानों का 20% भाग वनाचित होना चाहिए |
- 1953 में राजस्थान वन अधिनियम बनाया गया |
प्रशासनिक दृष्टि से वनों को तीन भागों में बांटा गया
(1) आरक्षित
(2) रक्षित
(1)अवर्गीकृत
1972 में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए
- राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण 1972 बनाया गया |
- राजस्थान में 1973 में लागू हुआ |
- 1976 में 42वां संविधान संशोधन हुआ इसके अनुसार वनों एवं वन्यजीवों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया |
- 1980 में राष्ट्रीय वन संरक्षण अधिनियम बनाया |
- इसके तहत 1981 में भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की गई |
- मुख्यालय – देहरादून |
- 1988 में नई संशोधित राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई |
- फरवरी 2010 में राजस्थान सरकार ने पहली राज्य नीति घोषित की गई |
- राजस्थान देश का पर्यावरण नीति बनाने वाला पहला राज्य बना |
- प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है |
- थीम 2022- only one earth
- 1 जुलाई – 7 जुलाई के बीच राष्ट्रीय वन महोत्सव सप्ताह मनाया जाता है
- 2 अक्टूबर – 8 अक्टूबर के बीच राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह मनाया जाता है
वनों का प्रशासनिक/ वैधानिक/ संविधानिक वर्गीकरण
प्रशासनिक प्रतिवेदन 2021-22 के अनुसार अभी लिखित वन 32864.621 किलोमीटर है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9.60% है |
राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अनुसार वे तीन भागों में विभाजित किया गया है |
(1)आरक्षित वन
- इन वर्गों पर पूर्ण स्वामित्व सरकार का है लकड़ी काटने और पशु चारण सरकार का पुणे प्रतिबिंध प्होता है |
- 12176.24 1 किलोमीटर है |
- जो कुल अभिलिखित वनों का 37.5% है |
- सर्वाधिक उदयपुर में है |
(2) सरक्षित /रक्षित वन
- इन वनों पर भी सरकार का अधिकार होता है |
- लकड़ी काटने पशु चराने पर सरकार का प्रतिबंध होता है परंतु लाइसेंस धारी व्यक्ति सरकार के आदेशानुसार लकड़ी काट सकता है |
- राज्य में 18564..45 1 किलोमीटर है जो कुल अभिलेखत वनों का 56.59%है |
- सर्वाधिक बारा जिले में है |
(3) अवर्गीकृत वन
- सरकार के अधीन है |
- लकड़ी काटने पशु चारण पर प्रतिबंध नहीं होता है |
- राज्य में 2124 वर्ग किलोमीटर है |
- जो अभीलिखित वनों का 6.46% है |
- सर्वाधिक बीकानेर में है |
वनों के प्रकार(भौगोलिक वर्गीकरण)
धरातलीय स्वरूप जलवायु और मिट्टी की भिन्नता के आधार पर वनों को भौगोलिक दृष्टि से कई भागों में विभाजित किया गया है |
(1)उष्णकटिबंधीय कटीले वन
यह वन 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं अर्थात पश्चिमी मरुस्थलीय शुष्क एवं अर्ध शुष्क प्रदेशों में इनकी प्रधानता है |
- इन वनों में पेड़ अधिक छोटे और झाड़ियों की अधिकता होती है |
- शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में खेजड़ी, रोहिडा ,बेर, खेर, थोर आदि के वृक्ष पाए जाते हैं इनकी जड़ें लंबी होती है तने पर छाल अधिक होता है छोटी नुकीली पत्तियां होती है |
- इसे मरुधभिद वनस्पति भी कहा जाता है |
- मरुस्थल में खेजड़ी की उपयोगिता सर्वाधिक होती है |
- राजस्थान का कल्पवृक्ष कहते हैं |
- खेजड़ी /शमी वृक्ष/ बन्ना बन्नी /पेमय भी कहते हैं |
- पत्तियों को – लूम
- फली को – सांगरी
- 1983 में राज्य वृक्ष का दर्जा
- रोहिड़ा के फूल को-राज्य पुष्प का दर्जा
- मरुस्थल का सागवान/मरुसोभा/ मारुटीका कहते हैं
- वृक्षों के साथ झाड़ियां भी पाई जाती हैं
- फोग ,आंकड़ा, बेर, केर, लाना
- झाड़ियों में सेवन व धामन घास पाई जाती है
- धामण – दुधारू पशुओं के लिए उपयोगी
- सेवण – सभी सभी प्रकार के पशुओं के लिए उपयोगी
(2) उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन
- यह वन 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में पाया जाता है |
- इनका विस्तार भी राजस्थान में विस्तृत क्षेत्र पर है |
- यह राजस्थान के मध्यवर्ती दक्षिण दक्षिण पूर्वी बागो पर सर्वाधिक पाए जाते हैं |
- इन वनों में वृक्षों की विविधता पाई जाती है अतः कई ऊप भागों में विभाजित किया गया |
a.शुष्क सागवान वन
- यह वन दक्षिणी भाग में पाए जाते हैं |
- 75–110cm वर्षा होती है |
- या सर्दी और पाला को सहन नहीं कर सकते अतः इनका विस्तार राज्य के दक्षिणी भाग में उदयपुर, डूंगरपुर , बांसवाडा, झालावाड़ ,चित्तौड़गढ़, बारा मे है |
- सागवान की लकड़ी इमारती कार्य कृषि औजार बनाने में काम आती है |
- सागवान के साथ साथ तेंदू, धावड़ा, खैर , रीठा, सेमल आदि पाई जाती है |
- इनमे 50-75% सागवान के वन पाए जाते हैं |
- © तेंदू -स्थानीय भाषा में टिमरू कहते हैं |
- इन के पत्तों से बिड़ी बनाई जाती है |
- तेंदू पत्ता का राष्ट्रीयकरण 1974 मे हुआ |
b. खेर-
- इससे कत्था प्राप्त किया जाता है
- यह कार्य का कथोड़ी जाति हांडी प्रणाली के द्वारा करती हैं
- खैर चमड़ा रंगने के काम भी आता है
c. सालर वन
- समुद्र तल से 450 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ियों में पाई जाती |
- सालर के वृक्षों की अधिकता |
- सालर के साथ साथ धोक, धावड, कहीरा भी पाया जाता है |
- सालर -गोंद का अच्छा स्रोत |
- पैकिंग का फर्नीचर बनाया जाता है |
d. बांस वन
- यह प्रचुर वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते |
- राजस्थान में बांसवाड़ा ,चित्तौड़गढ़, उदयपुर ,डूंगरपुर में सर्वाधिक पाए जाते हैं |
- बांस के साथ साथ धोकड़ा और सागवान भी पाया जाता है |
- छप्पर, टोकरिया बनाई जाती है |
राष्ट्रीय बांस मिशन 2006-7 के अनुसार बांस को सबसे लंबी घास मानी जाती है
2018 में क्रियान्वित हुई |
e. धोकड़ वन
- 260-760m ऊंचाई तक
- राजस्थान में सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर पाए जाते है |
- मरुस्थल को छोड़कर राज्य के शेष सभी भागों में |
- धोक वन पाए जाते हैं |
- लकड़ी अत्यधिक कठोर होती है |
- अतः इससे ईंधन का कोयला बनाया जाता है |
- जयपुर ,अलवर ,अजमेर ,कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर
- उदयपुर ,राजसमंद ,चित्तौड़गढ़ में पाए जाते हैं |
- धोक वनों के साथ-साथ सालर के वृक्ष पाए जाते हैं |
- पहाड़ियों की तलहटी वाले क्षेत्रों में धोक के साथ साथ पलाश के वृक्ष भी पाए जाते हैं |
f. पलाश वन
- कठोर और पथरीले धरातल पर पाए जाते हैं |
- मैदानी भागों में अपेक्षाकृत कम पाए जाते हैं |
- पलाश को जंगल की आग भी कहा जाता है |
- इनका फैलाव अलवर अजमेर सिरोही उदयपुर पाली, चित्तौड़गढ़ में है |
g. खेर वन
- दक्षिणी राजस्थान में बहुलता इसके अतिरिक्त झालावाड़, कोटा ,बारा ,चित्तौड़गढ़ ,सवाई माधोपुर उदयपुर, डूंगरपुर
h. बबूल के वन
- गंगानगर, हनुमानगढ़ ,बीकानेर ,नागौर ,अलवर भरतपुर, जालौर में मिलते हैं |
- यह कम नमी वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं |
- अधिक नमी वाले शेत्रों में इनकी सघनता बढ़ जाती है |
i. मिश्रित पर्णपाती वन
- 50-80 सेमी वाले क्षेत्रों में पाई जाती |
- विस्तार सिरोही उदयपुर राजसमंद चित्तौड़गढ़ 12 कोटा में सर्वाधिक पाए जाते हैं |
- इनमें किसी एक प्रकार के वन की प्रधानता नहीं होती है |
- जैसे साल, सागवान ,शीशम, बांस,आंवला, महुआ हरड बरड़ा आदि |
- आदिवासियों का कल्पवृक्ष |
- शराब बनाई जाती है |
- बीजों से तेल निकाला जाता है |
(3) उपोष्ण पर्वतीय वन (सदाबहार वन)
- यह ऊर्ध्वाधर वनों में शामिल है |
- राजस्थान में सर्वाधिक कम पाया जाता है |
- आम, जामुन ,बांस, यूकेलिप्टस की प्रधानता है |
- यूकेलिप्टस -पर्यावरण पारिस्थितिकी का शत्रु |
ISFR -2021 (इंडियन स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट )
- भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग, केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन है |
- यह प्रति 2 वर्ष में वन गणना करता है |
- भारत में वन गणना का कार्य 1987 में शुरू हुआ 2021 तक भारत में 17 वन गन्ना हो चुकी है |
- वर्तमान में जनगणना सुदूर संवेदी उपग्रह रिसोर्सेज 2nd के द्वारा की जाती है |
- 17वी जनगणना के आंकड़े केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के द्वारा जनवरी 2022 में दिए गए |
- इस वन गणना में पहली बार बाघ संरक्षण परियोजना, बाघ कोरीडोर शेर संरक्षित शेर कॉरिडोर और गिर के जंगलों को शामिल किया है |
ISFR 2021
वनावरण -16654.96 वर्ग किलोमीटर(भौगोलिक क्षेत्रफल का – 4.87%)
- वृक्षआवरण -8733 वर्ग किलोमीटर(भौगोलिक क्षेत्रफल का – 2.55%)
- कुल वनावरण+वृक्ष वनावरण-25388 वर्ग किलोमीटर(भौगोलिक क्षेत्रफल का-7.42%)
- वनावरण में वृद्धि – 25 वर्ग किलोमीटर
- वृक्षआवरण में वृद्धि -621वर्ग किलोमीटर
- कुल वृद्धि – 646 वर्ग किलोमीटर
सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले जिले
- उदयपुर – 23.49%
- प्रतापगढ़ – 23.24%
- सिरोही – 17.49%
- करौली – 15.28%
- बारा – 14.45%
सर्वाधिक वन विस्तार वाले जिले
- उदयपुर – 2,753.29 km
- अलवर – 1195.91 km
- प्रतापगढ़
- बारा
- चित्तौड़गढ़
राजस्थान में न्यूनतम वन विस्तार वाले जिले
- चुरू
- हनुमानगढ़
- जोधपुर
- गंगानगर
- दोसा
राजस्थान में न्यूनतम वन प्रतिशत वाले जिले
- जोधपुर – 0.48%
- चूरु – 0.56%
- जैसलमेर – 0.84%
- बीकानेर – 0.92%
- नागौर हनुमानगढ़- 0.96%
राजस्थान में सर्वाधिक वन वृद्धि वाले जिले
- अजमेर – 26.45 km
- पाली – 26.01 km
- बीकानेर – 24.10 km
ISFR-2021 मैं राजस्थान में 25 . 45 किलोमीटर पर वनों में वृद्धि दर्ज की गई |
राज्य के 19 जिलों में वृद्धि दर्ज की गई |
राज्य के 14 जिलों में कमी दर्ज की गई |
सर्वाधिक वन क्षेत्र में कमी वाले जिले
- जालौर – -32.46km
- करौली – -26.16km
- सिरोही – -13.49km
ISFR 2021 – 4.87 प्रतिशत वनंचित
- सर्वाधिक सघन वन V.D.F.
- मध्यम सघन वन M.D.F.
- खुले वन OF
राजस्थान का वनावरण
1- अत्यंत सघन वन-78.15 वर्ग किलोमीटर
- भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत -0.02%
- सर्वाधिक – अलवर, जयपुर
- न्यूनतम – बीकानेर
2-सामान्य सघन वन – 4368.65वर्ग किलोमीटर
- भोगोलिक क्षेत्रफल का प्रतिशत – 1.28%
- सर्वाधिक – उदयपुर
- न्यूनतम – चूरु
3- खुले वन- 12208.16km
- भौगोलिक क्षेत्रफल का प्रतिशत -3.57%
- सर्वाधिक – उदयपुर
- न्यूनतम – चूरु
4-कुल वनावरण -16654.96km
- भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत -4.87%
- सर्वाधिक – उदयपुर
- न्यूनतम – चूरु
5-झाड़ी वन-4808.51km
- भौगोलिक क्षेत्रफल का प्रतिशत -1.41%
- सर्वाधिक – पाली
- न्यूनतम – हनुमानगढ
- राजस्थान में अत्यंत सघन वन 78.15 वर्ग किलोमीटर पर है |
राजस्थान में सर्वाधिक झाडी वन वाले जिले
- पाली
- करौली
- जयपुर
राजस्थान में न्यूनतम झाड़ी वन
- हनुमानगढ़
- गंगानगर
- चुरु
राजस्थान में प्रति व्यक्ति औसतन वनावरण एवं वृक्षआवरण 0.037 हेक्टेयर हैं |